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प्रधानमंत्री मोदी के 10 साल के शासन में रोज़गार के लिए भटकते रहे नौजवान

 18 Apr 2024

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता में आये हुए 10 साल हो चुके हैं, इन दस सालों में  बेरोज़गारी की स्थिति बद से बदतर हुई है। एक आँकड़े के मुताबिक 2018 से 2022 के बीच बेरोज़गारी के कारण 9,140 बेरोज़गार युवाओं ने आत्महत्या की हैं। प्रधानमंत्री अपनी कौशल विकास योजना के तहत रोज़गार उपलब्ध करवाने में नाक़ामयाब रहे हैं। भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी का स्तर पिछले 45 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है।



भारत में बेरोज़गारी की असली तस्वीर 


आँकड़े बताते है कि साल 2014 से लेकर 2021 तक रोज़गार की दर में गिरावट आयी है। पिछले सात सालों में जो रोज़गार दर में वृद्धि देखी गयी है, उसका अंतर बेहद मामूली है। पिछले सात सालों में भारत में रोज़गार दर कुछ इस प्रकार रही है - 

YEARWISE EMPLOYMENT OPPORTUNITIES

 

रोज़गार के क्षेत्र में 2021 में मात्र 2 प्रतिशत की वृद्घि देखी गयी जिसकी वज़ह से रोज़गार दर 46.3 प्रतिशत तक पहुंच सकी। प्रधानमंत्री मोदी के राज में भारत 2014 की रोज़गार दर भी प्राप्त नहीं कर सका है। यू.के स्थित ग्लोबल डाटा के अनुसार, भारत में जितने कुल बेरोज़गार लोग है उनमें से आधे लोगों को भी सरकार रोजगार नहीं दे पायी है।


भारत सरकार के अनुसार, सरकारी नौकरियों में आवेदन किये गये 22 करोड़ आवेदनकर्ताओं में केंद्र सरकार मात्र लगभग 7 लाख 22 हज़ार लोगों को ही रोज़गार दे पायी है।



भारत में रोज़गार की स्थिति बहुत ख़राब 

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत में रोज़गार की स्थिति बहुत ख़राब है। ग़ैर-कृषि कार्यों में जिस रफ़्तार से लोग जा रहे थे वो रफ़्तार अब धीमी हो गयी है। लोग अब कृषि क्षेत्र की तरफ़ ज़्यादा रुख कर रहे हैं। भारत रोज़गार रिपोर्ट को मानव विकास संस्थान (आईएचडी) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) मिलकर जारी करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2004-05 से लेकर 2021-22 तक रोज़गार की स्थिति में पहले की तुलना में सुधार तो हुआ है, लेकिन कुछ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, झारखण्ड में रोजगार का स्तर सबसे निचला रहा।

जबकि कुछ अन्य राज्य जैसे दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात रोजगार दर में शीर्ष स्थान पर थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि रोज़गार के अनौपचारिक क्षेत्रों में वृद्धि देखी गयी है, जबकि औपचारिक क्षेत्रों में भी लगभग आधी फ़ीसदी नौकरियां अनौपचारिक प्रकृति की हैं। भारत में कुल काम करने वाले लोगों में से 90 प्रतिशत लोग अनौपचारिक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 तक नियमित रोज़गार की दर 23.8 प्रतिशत रही, जो कि 2022 में घटकर 21.5 प्रतिशत पर जा पहुंची।




महिला रोज़गार की स्थिति


रोज़गार रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं की भागीदारी श्रम के मामले में सबसे कम है। साल 2000 से लेकर 2019 तक महिला श्रम भागीदारी में 14.4 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज़ की गयी। जबकि पुरुषों में यह गिरावट लगभग 8 प्रतिशत रही। साल 2022 में महिला श्रम में 8.3 प्रतिशत की वृद्धि और पुरुषों में 1.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गयी, लेकिन यह रोज़गार की पुरानी स्थिति को भी वापस नहीं ला पाया है।



युवा रोज़गार


माध्यमिक स्तर या उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं में बेरोज़गारी का स्तर बहुत तेज़ी से बढ़ा है। रोज़गार रिपोर्ट के अनुसार कुल बेरोज़गारी दर में से 83 प्रतिशत बेरोज़गार युवा हैं। अंग्रेजी अख़बार द हिंदू के अनुसार, 2018 और 2022 के बीच बेरोज़गारी के कारण 9,140 लोगों ने आत्महत्या की जिसमें 3,548 लोगों की मौत कोविड महामारी के दौरान यानी 2020 में दर्ज़ की गयी हैं।


केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2014 में रोजगार को लेकर बहुत बड़े-बड़े वादे किये थे, जबकि साल 2019 में भी रोज़गार को लेकर सरकार की तरफ़ से कई भ्रामक बातें की गयी थी। वादों के अनुसार दस सालों में मोदी सरकार को 20 करोड़ रोज़गार मुहैया कराने चाहिये थे, लेकिन नहीं करा पायी । साल 2012 में बेरोज़गारी दर 2.1 प्रतिशत थी जो साल 2018 तक  6.1 प्रतिशत पर पहुंच गयी, जो कि 45 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक बेरोज़गारी दर है।


2012 में बेरोज़गार लोगों की संख्या 1 करोड़ थी, 2018 में यही संख्या बढ़कर 3 करोड़ तक पहुंच गयी थी। शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की बात करें तो आँकड़े बहुत कुछ बयाँ कर रहे है। ग्रेजुएट बेरोज़गार युवाओं की दर 19 फ़ीसदी से बढ़कर 35 फ़ीसदी तक पहुंच चुकी है। वहीं पोस्ट ग्रेजुएशन किये हुए बेरोज़गार युवाओं की दर 21 प्रतिशत से बढ़कर 36 प्रतिशत तक पहुँच गयी है। सवाल यह है कि मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति-2020 के तहत जिस उच्च शिक्षा में नामांकन को 27 से 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया था,  लेकिन शिक्षित बेरोज़गारों की इस बड़ी तादाद के लिए कोई उपाय नहीं है।



युवाओं में है कौशल(स्किल्स) की कमी

इंडिया स्किल रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में आधे ग्रेजुएट अभी भी बेरोज़गार हैं। सवाल यह है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता में क्या कमियां हैं?, देश में इस समय 42000 कॉलेज हैं इनमें से ज़यादातर ऐसे हैं जहाँ न तो परीक्षा वक़्त पर होती है न कक्षाओं में शिक्षक मौजूद होते हैं। इसके अलावा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों की निजी स्कूलों तक पहुंच आसान नहीं है।



कौशल विकास नीति नाकाम रही


मोदी सरकार द्वारा साल 2014 में कौशल विकास नीति के तहत 2022 तक 40 करोड़ लोगों को कुशल( स्किल्स वाला) बनाने का लक्ष्य रखा गया, जबकि परिणाम इसके विपरीत रहा। साल 2012 में औपचारिक रूप से शिक्षित और प्रशिक्षित लोगों की हिस्सेदारी 2.3 प्रतिशत पर रही थी, जबकि 2012 से लेकर 2022-23 तक यह हिस्सेदारी मुश्किल से ही 2.4 प्रतिशत तक ही पहुंच पायी है। 


प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के पहले हिस्से के तहत 18 लाख़ लोगों को प्रशिक्षित किया गया जबकि इनमें से मात्र 14 प्रतिशत लोगों को ही रोज़गार मिल पाया। दूसरे हिस्से के तहत 45 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया गया जबकि इनमे से 43 प्रतिशत लोगों को ही रोजगार मिल सका। तीसरे हिस्से के तहत 40,000 लोगों को प्रशिक्षित किया गया जिसमें से सिर्फ़ 7 प्रतिशत लोगों को ही रोज़गार प्राप्त हुआ। एक बात गौर करने वाली यह यही कि इसके अभी तक कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं कि जिन लोगों को प्रशिक्षण के बाद रोज़गार मिला है  या उस रोज़गार का स्तर यानी वेतन क्या रहा है।

2012 में औपचारिक व्यावसायिक शिक्षा पाने वाले युवाओं की बेरोज़गारी दर 18.5 प्रतिशत थी, जो 2018 में बढ़कर 33 प्रतिशत हो गई। तक़नीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों में बेरोज़गारी दर 2012 में 18.8 प्रतिशत थी जो 2018 में बढ़कर 37.3 प्रतिशत पर पहुँच गयी। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि ये आंकड़े युवाओं के रोज़गार को लेकर इतनी भी साफ़ स्थितियों को स्पष्ट नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हर साल लाखों युवा रोज़गार की तलाश करने वालों की संख्या में जुड़ जाते हैं।


2023 तक के आँकड़ों के अनुसार, कुल काम करने वाले लोगों की संख्याओं का 46 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। जबकि कृषि क्षेत्र का भारत की जीडीपी में मात्र 15 प्रतिशत तक का ही योगदान है। भारत में कृषि व्यवस्था की क्या हालत है और इससे प्राप्त आय कितनी होती है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि किसान कर्ज़ों के तले दबे हुए हैं। 

2016 से लेकर कोविड महामारी के समय तक नये ग़ैर- कृषि कार्यों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज़ की गयी। एक बात स्पष्ट करना जरुरी है कि कृषि क्षेत्र से जितने लोग जुड़े हुए हैं वो सभी पहले से ही कृषि की रोज़गार क्षमता से ज़्यादा हैं। इसके बावजूद कोविड महामारी के दौरान कृषि क्षेत्र में 6 करोड़ अतिरिक्त नये लोग कृषि रोज़गार का हिस्सा बने थे।

2016 के बाद से विनिर्माण (मैन्यूफैक्चर) क्षेत्र का भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान कम होता जा रहा है, जबकि नौकरी के मामले में विनिर्माण क्षेत्र बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। 2013 में कुल विनिर्माण क्षेत्र की ग्रोथ 4.8 प्रतिशत मापी गयी थी जो गिरते हुए 2016 में 2.8 प्रतिशत पर जा पहुंची। कोविड के दौरान विनिर्माण क्षेत्र का योगदान नकारात्मक होकर -9.6 प्रतिशत पर जा पहुंचा था। 2023 के ताजे आँकड़ों के अनुसार अभी विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर 4.7 प्रतिशत है जो 2013 की विकास दर से भी कम है।

ग़ैर कृषि रोजगार क्षेत्र की संख्या 2004-05 से 2012 के बीच 75 लाख प्रति वर्ष से घट कर 2013 से 2019 तक 29 लाख पर जा पहुंची है, यानी पहले की अपेक्षा, अब कम लोगों को नौकरियां मिल पा रही हैं। 

जिस निवेश को लेकर मोदी सरकार बड़े-बड़े वादे करती है उसकी सच्चाई वादों से एकदम उलट है। 2013-14 तक सकल घरेलू विकास में कुल निवेश का हिस्सा 31 प्रतिशत था, जो कि 2022-23 में गिर कर 29 प्रतिशत तक ही पहुंच पाया है।

श्रम और रोज़गार मंत्रालय के तहत केंद्र सरकार ने 1.5 करोड़ जॉब के अवसर उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, यह जॉब देश के 9 औपचारिक क्षेत्रों के माध्यम से दी गयी है। जैसे -आईटी, विनिर्माण, व्यापर और निर्यात इत्यादि। (2014 से 2022 तक का रिकॉर्ड है)


बेरोज़गारी को लेकर भारतीय संस्थाओं के आँकड़े

बेरोज़गारी को लेकर भारत की संस्थाओं के आँकड़े अलग-अलग कहानी बयान करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिए केंद्र (सीएमआईइ) के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर 10 प्रतिशत है। जबकि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के तहत भारत में बेरोज़गारी दर 5.3 (2022-23 तक) प्रतिशत है, जानकारों का मानना है कि ये अंतर इसलिए है क्योंकि दोनों ही संस्थानों के मापदंड बहुत अलग है। फिर भी सवाल तो उठता है कि दोनों के बीच इतना अंतर कैसे आ सकता है? 

हाल ही में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा था कि भारत में कर्मचारी भविष्य निधि संस्था (ईपीएफओ) में पंजीकरण संख्या बढ़ी है, इसलिए ये कहना ग़लत है कि भारत में रोज़गार को लेकर सरकार ने प्रयास नहीं किया है। लेकिन अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं है कि ईपीएफओ में संख्या बढ़ने का मतलब नये रोज़गार का बढ़ना है। यह सच है कि स्वरोज़गार करने वालों की संख्या 52 प्रतिशत से बढ़कर 58 प्रतिशत हो गयी, लेकिन इसमें एक बात ध्यान देने वाली यह है कि इस वृद्धि में अधिकांश हिस्सा अवैतनिक पारिवारिक श्रमों का जुड़ा हुआ है। विद्वानों का कहना है कि हमारे पास युवाओं की संख्या का लाभ उठाने के लिए मुश्किल से 17 साल बचे हैं, लेकिन सरकार इस मोर्चे पर बुरी तरह असफल साबित हुई है।